फासला मिटता रहे
कारवाँ बढता रहे
मंज़िलों की हर सिढी
हर कोई चढता रहे
हवा मे है ताज़गी
और क्षितिज पर लालिंमा
नज़र न आये कंही
निशा तेरी कालिमा
पर लगा कर पंछियोंके
हर कोई उड़ता रहे
मंज़िलों की हर सिढी
हर कोई चढता रहे
दिलमे हो झंकार हरदम
गीत और संगीत का
हर कोई खुल कर करें
ज़िक्र अपने मीत का
एकही हो तार दिलमे
दिलरुबा छिडता रहे
मंज़िलों की हर सिढी
हर कोई चढता रहे
साल मे नव हर जगह
उजाले मिल जायेंगे
याद कर गुज़रे दिनों के
अंधेरे क्या पायेंगे?
मिल गये फिर भी अंधेरे
हर कोई लड़ता रहे
मंज़िलों की हर सिढी
हर कोई चढता रहे
स्वागतम नव वर्ष का
खोल कर बाहें करें
बीज बोने नफ़रतों का
काम हम काहें करें?
चंद अक्षर प्यार के
हर कोई पढता रहे
मंज़िलों की हर सिढी
हर कोई चढता रहे
निशिकांत देशपांडे मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३
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