Saturday, November 24, 2012

क्यों इतनी देरसे?

इंतज़ार खत्म हुआ
आये आप प्यारसे
आना ही था एक दिन तो
क्यों इतनी देरसे?

बहारें तो आ ही गयी
लेकर साथ बसंत
मग़र पतझड का अंत

क्यों इतनी देरसे?

फूल खिले डाल पर
जैसे हुआ सवेरा
रुक़्सत घना अंधेरा
क्यों इतनी देरसे?

तारकायें रहते हुए
धूमिल था आकाश
चंद्रमा लाया प्रकाश
क्यों इतनी देरसे?

जीवन सारी खोज की
समंदर के तले
आखिर मोती मिले
क्यों इतनी देरसे?

जिंदगी की पहेली
बनी एक कहानी
ग़ज़ल बनी रुहानी
क्यों इतनी देरसे?

निशिकांत देशपांडे मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com

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