मंज़िल न मिल सकी तो क्या?
राह चलते तो रह गये
सपने न दिख सके तो क्या?
आँख मलते तो रह गये
पत्थर दिल मिले है तो क्या?
खुद पिघलते तो रने
नज़रोंसे न पिलाये तो क्या?
ज़हर निगलते तो रह गये
ज़ख्म़ कितनेभी दिये है तो क्या?
सब भूलते तो रह गये
रोशन नही शमा है तो क्या?
आशिक जलते तो रह गये
मुरझाया हुआ समा है तो क्या?
फूल खिलते तो रह गये
बादाल घने न छये तो क्या?
अश्कं गलते तो रह गये.
निशिकांत देशपांडे मो.क्र.९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com
राह चलते तो रह गये
सपने न दिख सके तो क्या?
आँख मलते तो रह गये
पत्थर दिल मिले है तो क्या?
खुद पिघलते तो रने
नज़रोंसे न पिलाये तो क्या?
ज़हर निगलते तो रह गये
ज़ख्म़ कितनेभी दिये है तो क्या?
सब भूलते तो रह गये
रोशन नही शमा है तो क्या?
आशिक जलते तो रह गये
मुरझाया हुआ समा है तो क्या?
फूल खिलते तो रह गये
बादाल घने न छये तो क्या?
अश्कं गलते तो रह गये.
निशिकांत देशपांडे मो.क्र.९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com
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