Tuesday, November 27, 2012

यादोंके बादल

जिंदगी मे जहर घुलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये

गजल गायी थी शायरों के साथ
नज्म लिखी थी याद है वह रात
शमा बुझाकर, जलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये

तडप कैसी है, मुश्किल है जीना
जहर यादोंका मिश्किल है पीना
चुरा कर नींद, सुलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये

गये होंगे कहीं और के साथ
आईना देख डरे और है बात
दाग दामन का धुलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये

जब सुनी आहट मेरी कोठी पर
शर्तिया थे तब नशे की चोटी पर
गलत हम समझे, बुलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये

आये तो क्या आये! देर के बाद
हौसला रखे क्या मौत के बाद?
कफन मेरा वो सिलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये


निशिकांत देशपांडे मो.क्र.९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com

 

No comments:

Post a Comment