एक अकेला एकावास
हर पल लंबा और उदास
भीड़ भरी बस्ती में अब क्यूं
गलियारें हो गये है सूने
था कारवाँ इर्द गिर्द में
पल पल रिश्ते थे बूने
ना जाने क्यूं ना रह पाता
खुद ही अपने खुद के पास?
एक अकेला एकावास
हर पल लंबा और उदास
आस लगाकर धडकन थामे
इंतज़ार उनके आने का
जुनून है गुल होने का और
खो कर खुदको पाने का
दस्तक सुनते ही लगता है
आया कोई अपना खास
एक अकेला एकावास
हर पल लंबा और उदास
ना जाने यह रात गुज़रने
कितने लग जायेंगे बरस
ख़स्ता हालत खराब मेरी
सब खाते है मुझपे तरस
ग़ैर भी अभी लगे है देने
अपने होने का अहसास
एक अकेला एकावास
हर पल लंबा और उदास
निशिकांत देशपांडे मो.क्र,९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com
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