लब पर उदास विरह के
दो गाने रह गये
इतने करीब आ कर भी
बेगाने रह गये
मंज़िल नही थी और कोई
जाये तो किधर जाये?
सुनता नही है आज कोई
गाये तो किधर गाये
आरमाँ बहूत थे सोये
जगाने रह गये
इतने करीब आ कर भी
बेगाने रह गये
मुसकान झलकती थी मेरी
मेरी हर एक बात पर
लिखा था नाम तुमने मेरा
नर्म रेत पर
गाने मिलनके साज पर
बजाने रह गये
इतने करीब आ कर भी
बेगाने रह गये
हम से कभी न आया गया
ना तुम बुला सके
दुनिया के डर को कभी
ना हम भुला सके
मौसम था प्यार का मगर
अनजाने रह गये
इतने करीब आ कर भी
बेगाने रह गये
निशिकांत देशपांडे मो. क्र. ९८९०७ ९९०२३
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